Friday, August 6, 2010

my first fiasco skit

this is my first ever skit coauthored by Me and Keshavendra.
We borrowed and expanded the original story by Harishankar Parsai "Bholaram ka jeev". the story was adapted to perform on stage and with special reference to LBSNAA.

but anyhow the things didn't materialize. We could not convince and inspire people to participate in this play.

Anyhow this was my first skit writing. Therefore it is a pleasure for me to put it before all....



यमराज - चित्रगुप्त ऐसा तो कभी नहीं हुआ था ।
चित्रगुप्त - हां महाराज , aisa कभी नहीं हुआ था। हमारा ओफिस करोडों सालों से कर्म और सिफारिश के आधार पर लोगों को स्वर्ग और नर्क का अलोटमेन्ट करता आ रहा है। पर ऐसा तो कभी नहीं हुआ था।(चित्रगुप्त फिर से अपना रजिस्टर पलटता हुआ)
यमराज - अरे, पर तुमने चैक किया क्या? भोलाराम पथ्वी से निकल तो गया ना?
चित्रगुप्त - हां महाराज, भोलाराम पांच दिन पहले ही मर चूका है। उसकी आत्मा यमदुत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुई। पर तबसे ना भोलाराम का पता है ना हि यमदूत का।
(यमदूत एन्ट्री)
यमदूत - (रोतडू चेहरे के साथ) - महाराज, कैसे बताउं कि क्या हुआ? आज तक मैंने कभी धोखा नही खाया था … पांच दिन पहले मैं भोलाराम के जीव को लेकर यहां के लिए निकला, पर वो mujhe चकमा देकर फरार हो गया। फिर मैंने उसकी तलाश मैं आकाश पाताल छान मारा पर उसका कही पता नहीं चला ।
धर्मराज - (पूरी तरह क्रोधित) मूर्ख! जीवों को लाते लाते बूढा हो गया फिर भी एक मामूली बूढे आदमी के जीवने तुझे चकमा दे दिया ?
दूत - (सर झुकाकर) महाराज! मेरी सावधानी में किसी तरह कि कोइ कमी नहीं थी। इन हाथों से तो बडे बडे मक्कार वकील और नेता तक नहीं छूट पाए। पर इस बार तो मानो जादू ही हो गया।
चित्रगुप्त - महाराज। आजकल तो किसी चीज का भरोसा ही नहीं रह गया है। आजकल तो राजनीतिक दलों के नेता विरोधियों को सुपारी दे के उठवा लेते हैं। हो सकता है कि भोलाराम के जीव को किसी भाई ने हि उठा लिया हो।
धर्मराज (चित्रगुप्त कि और व्यंगसे देखते हुए) - सठिया गये हो क्या? भला भोलाराम जैसे गरीब बूढे आदमी से किसी का क्या लेना देना।
*नारद प्रवेश*
नारद - नारायण नारायण! क्यों धर्मराज। आपके मुखमण्डल पर आज चिन्ता के बादल क्यों छाए हैं? क्या नरक में निवासस्थान की समस्या अभी हल नहीं हुई? अभी तक सारे नर्कनिवासी "शेर्ड अकोमोडेशन" मैं ही रह रहे हैं?
धर्मराज - अरे नहीं । वह समस्या तो कब की हल हो गई। आजकल अकेडेमी मैं - सोरी, नर्क में काफी सारे ठेकेदार, इन्जिनियर or bureaucrat आ चूके हैं। इन लोगोंने ठेकेदारो से मिलकर बजेट का खूब पैसा खाया है। जिधर जगह मिली उधर हमने बिल्डींग तान दी है। वैसे ही नरक कैसा दिखे इससे नरक के कैदियों को क्या फरक पडता है।अरे आजकल तो नर्क में स्केटींग रिन्ग भी बन गया है।
नारद - अच्छा अच्छा। तो फिर क्या बात है?
धर्मराज - अरे छोटी सी बात है। एक भोलाराम नामका जीव इस दूत को उल्लू बनाके फरार हो गया है। ओफिस की प्रेस्टिज का सवाल है।
नारद - अरे उसका इन्कमटेक्स तो बाकी नहीं था ना? यह इन्कमटेक्सवाले तो मुर्दे तक को टेक्स लिए बिना नहीं छोडते हैं।
चित्रगुप्त - अरे इन्कम होती तब तो टेक्स होता ना । भूखमरा था। अरे नारद जी, आप तो सारे ब्रह्माण्ड में घूमते रहते हो - हमारा भी यह जीव ढूंढ सको तो बडा उपकार होगा।
नारद - नारायण नारायण! बेचारा भोलाराम - पता नहीं उसकी आत्मा किस हाल में होगी? (यमराज के कानमें) - बोस! वैसे ही वेकेशन पर मैं धरती पर जा रहा था। अगर ओफिसिअल टी.ए.डी.ए. मिल जाए तो -----
यमराज - तथास्तु। टी.ए.डी.ए. मंजुर किया जाय।
नारद - धन्यवाद। पर उसका पता तो बता दो (चित्रगुप्त की और देखते)
चित्रगुप्त (रजिस्टर में देखते हुए) - भोलाराम नाम था उसका। मुखर्जीनगर में नाले के किनारे डेढ कमरे के टूटे फूटे किराये के मकान में रहता था। परिवार में एक पत्नी है और एक बेटी। उम्र पैसठ साल। सरकारी नौकर था। पांच साल पहले रिटायर हो गया। मकान का किराया नहीं भरा था। तो हो सकता है कि उसके मरने पर मकानमालिकने परिवार को निकाल दिया हो। आपको उसकी तलाशमें kafi भटकना पड सकता है।
नारद - नारायण नारायण । आप अपना काम हुआ ही समझिए। मैं अभी ही धरती की और प्रस्थान कर रहा हुं। नारायण नारायण।




Scene 2 (bholaram’s family)
(क्रन्दन सुनकर नारद घर खोजता है)
नारद - नारायण नारायण।
पत्नी -आइए महाराज! कहिए कैसे आना हुआ।
नारद - माते! यह भोलाराम का ही घर है?
पत्नी - हां महाराज।
नारद - माता भोलाराम को क्या बिमारी थी?
पत्नी - अरे क्या बताऊं? गरीबी की बिमारी थी। पांच साल हो गए रिटायर हुए, पर अभी तक पैन्शन नहीं मिला। हर हफ्ते एक दर्ख्वास्त देते थे पर या तो जवाब आता नहीं था। और एक दो बार आया तो यही कि मामले पर विचार हो रहा है।बिना पेन्शन के ही उनका देहांत हो गया।
नारद - मां यह तो बताओ, किसीसे उनका विशेष प्रेम था, जिनमें उनका जी लगा हो?
पत्नी - लगाव तो महाराज, बाल बच्चों से ही होता है।
नारद - नहीं परिवार के बाहर भी हो सकता है। मेरा मतलब है - किसी स्त्री------
पत्नी - (गुर्राकर नारद को देखते हुए) साधु होकर ऐसी उचक्कों जैसी बातें मत करो महाराज। जिंदगीभर उन्होंने किसी दुसरी स्त्री को आंख उठाकर नहीं देखा।
नारद (हंसते हुए) - ठीक ही है। इसी भ्रम पर तो सारी शादियां कायम हैं। अच्छा माता, मैं चला।
पत्नी - महाराज आप तो पहुंचे हुए साधु लगते हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रुकी हुई पेन्शन मिल जाए?
नारद - (दयासे) साधुओं की बात कौन मानता है? फिर भी मैं कोशिश करता हूं।

Scene 3 (naarada in SDM’s office)
(3 tables, with three babus on them, in one corner one big table with good chair – SDM sitting, bholaram sitting with eyes fixed on the files)

(नारद आजुबाजु देखता है और भोलाराम के जीव को देखता है। भोलाराम उसके पास आता है।)
नारद - अरे भाइ, तुम ही भोलाराम हो ना।
क्लर्क - क्या क्या लोग आ जाते हैं। हवा में बतियाते रहते हैं।
भोलाराम - हां महाराज, पर आप कौन?
नारद - हम नारद हैं।
भोलाराम - प्रभू।
नारद - अरे पर तुम यहां क्या कर रहे हो?
भोलाराम - यह मेरी पेन्शन की फाइल यहां अटकी हुइ है| उसी की निगरानी कर रहा हूं।
नारद - चलो मैं देखता हुं|
क्लर्क - ओ महाराज, खाली पीली भीड मत करो। क्या काम है वो बोलो।
नारद - (पहले बाबू के पास) साहब, भोलाराम नाम के जीव की पेन्शन की फाइल यहीं है क्या?
बाबू - ओ भोलाराम, हां हां फाइल तो उसकी है। दरख्वास्तें भेज भेज कर नाक में दम कर रखा था। "वजन" कुछ रखा नहीं था, इसलिए कहीं उड गई होंगीं।
नारद - अरे इतने सारे पेपरवेट तो हैं। उन्हें क्यों नहीं रख देते?
बाबू - आप साधु हैं। आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती। एक काम कीजिए आप सीधे साहबसे ही मिल लिजिए। (एस डी ऍम के प्रति इशारा करके)
नारद - धन्यवाद।
(नारद बडे साहब के सामने पहुंचता है)
साहब - (नाराज होते हुए) - इसे कोइ मन्दिर वन्दिर समझ लिया है क्या? धडधडाते घूसे जा रहे हो। क्या काम था?
नारद - क्षमा करें महोदय। एक भोलाराम नामके गरीब जीव की पेन्शन के बारे में बात करनी थी।
साहब – बिलकुल| पर हां, यह भी मन्दिर है। यहां भी दान पूण्य करना पडता है। भोलाराम की दरख्वास्तें उड रहीं हैं , पैन्शन चाहिए तो उन पर वजन रखिए।
नारद - साहब, यह वजन????? कुछ समझ नहीं आया।
साहब - भाई सरकार इतने पैसे दे रहीं है। बीसों दफ्तरों में छानबीन होती है। अब इसमें समय तो लगेगा ही। हां........ आप चाहें तो जल्दी भी हो सकता है मगर......
नारद - मगर क्या???????/
साहब - (कुटिल मुस्कान के साथ) वजन चाहिए....... (उठकर नारद की वीणा को हाथ से छूते हुए) वैसे यह वीणा भी ठीक ही दिख रही है। इसका वजन भी रख सकते हैं। मेरी लडकी गाना बजाना सीख रही है..........
नारद - अच्छा अब समझा।
(यमराज को काल करते हैं कोने में जाकर - सर। गुड मोर्निंग सर। सर, यहां तो घूस मांग रहे हैं। क्या करें?
यमराज - क्या मांग रहे हैं?
नारद - वीणा मांग रहे हैं।
यमराज - अरे क्या वीणा के पीछे पडे हो? यहां ओडिट पारा हो जाएगा अगर एक जीव का भी स्टोक नहीं मिला तो। दे दो वीणा यार।
नारद - ओके सर। ठीक है सर।
(बैकग्राउन्ड से आवाज आती है - नारदजी यमराज को सर सर कीए जा रहे हैं)
नारद - (औडिएन्स के तरफ आकर) यार, अभी साइड पोस्टिंग पर है फिर भी सिविल लिस्ट में तो दो बैच सिनियर है। सर तो कहना पडता है।
(नारद धीरे से जाकर एस डी एम की टेबल पर वीणा रख देते हैं और कहते हैं)
नारद - यह लीजिए आपका वजन.... अब जरा भोलाराम की पेन्शन का ओर्डर निकाल दीजिए।
साहब - (खुश होते हुए) आप चाय वाय पीजिए, तब तक मैं भोलाराम का काम कर देता हूं।
साहब - (बडे बाबू कि और देखते हुए) अरे भोलाराम के कैस की फाइल लेते आइए।
(बडे बाबू फाइल लेकर आता है)
साहब - अरे इसमें तो कोर्ट केस फंसा हुआ है। यह बात तो हमारे कन्ट्रोल के बहार है।
नारद - तो इसमें कैसे पैन्शन मिलेगा?
साहब - आप एक काम कीजिए । आप जाकर कोर्टमें जज साहब को मिलिए। वही अब आपकी मदद कर सकते हैं।
नारद - अच्छा। धन्यवाद| पर हमारी वीणा।
साहब - महाराज, एकतरफा रास्ता है ये। समझा कीजिए। उसुलों का सवाल है।
नारद - नारायण नारायण|
(curtains drawn)

Scene 4 (bholaram in court)
यशोदा - हाइ री कलमूंही। तू कब से भोलाराम की पत्नी बन गई?
कजरी - (आंख मारते हुए) - जब से भोलाराम के पेन्शन का पता लगा ।
(बेक्ग्राउन्ड में - यशोदा देवी बनाम कजरी देवी,सिविल कैस १०/२०१० हाजिर हो)
(नारद, भोलाराम का जीव, कजरी, उसका वकील और यशोदा एन्ट्री)
सारे (जज की ओर देखते हुए) - नमस्ते साहब।
जज - कोर्ट की कार्रवाई शुरु की जाए। (सारे लोगों को इग्नोर करते हुए)
जज - आप कौन हैं? (नारद को देखते हुए)
नारद - हम नारद हैं।
वकील - सर, यह कोइ भी हो, इनका इस केस में कोइ लेना देना नहीं है। ही हैस नो लोकस स्टेण्डी।
नारद - क्या क्या क्या । हमारे पास क्या नहीं है? हम ब्रह्मर्षि हैं। (वकील - लोकस स्टेण्डी, लोकस स्टेण्डी)
जज - आप कोई भी हो, इससे हमें कोइ फरक नहीं पडता। आप वहां सामने जाकर बैठ जाइए।
(नारद नाराज होकर बाहर निकलता है)
वकील - कजरी देवी, क्या आप बता सकते हैं कि आप के और भोलाराम के बीच में क्या संबंध था?
कजरी - घरवाला था वो हमारा।
(भोलाराम का जीव छटपटाता है –
भोलाराम - जज साहब, मैंने कभी उसे देखा तक नहीं। सच्ची|
(नारद उसे चूप कराता है। shhhhhhhhh…..)
वकील - क्या आप कोइ सबूत दे सकतीं हैं कि जिससे साबित हो कि भोलाराम आपके पति थे?
कजरी - बिलकुल। हमारे दो बच्चे हैं। एक लडका । एक लडकी।
वकील - क्या वो लोग यहां पर हैं?
कजरी - नहीं साहब, वो दोनों स्कूल गए हैं। अगली तारीख पर ले आउंगी।
वकील - न्याय के हित में इस केस में सबूत पेश करने के लिए एक तारीख दी जाए, मि लोर्ड।
जज - यह केस की कार्रवाई अगले दो सालों के लिए मुल्तवी की जाती है।
(नारद, यशोदा, भोलाराम सारे चिल्लाते हैं - क्या?? )
(कजरी और उसका वकील बहार निकल जाते हैं।)
(कोर्ट का क्लर्क नारद को इशारे से बुलाता है)
नारद - क्या यह तारीख का कुछ नहीं हो सकता है?
क्लर्क - मुश्किल है। इतने सारे केस पेन्डिंग है। हां....... जरा ....... (उंगली से पैसे का इशारा करते हुए)... मिल जाए तो .......
(जज नारद की रुद्राक्ष की माला की और देख रहा है)
क्लर्क - महाराज।
नारद - नहीं। हम नहीं दे सकते।
क्लर्क - फिर दो साल के बाद।
नारद - अरे अरे। यह लीजिए।
जज - अगली सुनवाई अगले मंगलवार।
सारे - थेंक यु वेरी मच।


(बेक्ग्राउन्ड में - यशोदा देवी बनाम कजरी देवी,सिविल कैस १०/२०१० हाजिर हो)
(कजरी का वकील क्लर्क को कुछ पैकेट दे रहा है और क्लर्क सर हिला रहा है।
जज - कजरी देवी बनाम यशोदा देवी । इस केसमें सारे सबूतों को मद्दे नजर रखते हुए यह अदालत इस नतीजे पर पहुंचती है कि (भोलाराम - अरे पर पहले सबूत तो ले लो) कजरी देवी स्वर्गस्थ भोलाराम की कानूनन पत्नी है। श्रीमती यशोदादेवी अपने आप को श्री भोलाराम की पत्नी साबित करने में निष्फल रहे हैं। अतः श्री भोलाराम का पेन्शन शत प्रतिशत श्रीमती कजरी देवी को दिया जाय।
(कजरी देवी और वकील खुश मुद्रा में एक दूसरे को ताली देते हैं।)
यशोदा, भोलाराम, नारद - अरे, पर... पर....
जज - एक बार खुली अदालत में फैसला सुना दिया तो सुना दिया।.......
(नारद क्लर्क के पास जाता है।)
नारद - पर कुछ समझ में नहीं आया। यह कैसे हो गया।
क्लर्क - आपको क्या लगता है। सामने वाले भी माला ही देते होंगे? (पेकेट की और इशारा करते हुए)
(बेकग्राउन्ड - सत्यमेव जयते)
(exit judge and clerk
नारद - भोलाराम, चिंता मत करो। चलो स्वर्गमें चलते हैं।
भोलाराम - नहीं, जब तक मुझे न्याय नहीं मिलता तब तक मैं नहीं चलूंगा।
नारद - अरे चलना पडेगा।
भोलाराम - हम नहीं आएंगे।
नारद - अरे यार एक मिनट रुक| (कोने में जाकर यम को फोन करता है।)
नारद - सर, यह तो मान ही नहीं रहा है।
यम- ठीक है। चलो मैं ट्राय करता हूं।
यम - (विष्णु को फोन करते हुए) सर। एक प्रोब्लेम है सर।
Simultaneously
(यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सजाम्यहम॥)
(विष्णु एन्ट्री करता है)
भोलाराम - अरे भगवान विष्णु। जय हो प्रभु। अब मुझे न्याय मिलेगा।
विष्णु - क्या ? नहीं नहीं। बाकी सब मांग लो। न्याय व्याय की बात मत करो।
भोलाराम - क्या? पर अभी तो यह सब गा रहे थे कि.....
विष्णु- यार , वो सब हम द्वापर तक करते थे... अगर इस श्लोक को सिरियसलि लिया तो फिर तो मुझे हमेशा पृथ्वी पर ही रहना पडेगा। और तुम तो जानते हो ना लक्ष्मी को ....
भोलाराम - पर...
विष्णु- अरे न्याय छोड दो। हम तुम्हें स्वर्गमें एक बंगला, दो गाडी ओर चार अप्सराएं देंगे।
भोलाराम - पर मेरा परिवार।
विष्णु - उनकी चिंता छोड दो। वह हम देख लेंगे।
भोलाराम - ठीक है। अगर आप मेरे परिवार की जिम्मेवारी लेते हैं तो मुझे कोइ चिंता नहीं। पर एक ही शर्त पर मैं स्वर्ग में आने को तैयार हूं।
विष्णु - मांग मांग।
भोलाराम - मेरा पाला कभी भी भारत की इस नौकरशाही से या भारत के न्यायतन्त्र से ना पडे।
विष्णु- (सोच कर) तथास्तु। चलें अब स्वर्ग की और।
भोलाराम - चलिए।
(यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सजाम्यहम॥)

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