Saturday, August 7, 2010

upamaa alankaara - part XVII (types of वाचकलुप्ता)

वादिलुप्ता समासे स्यात्कर्माधारक्यचो: क्यङि |
कर्मकर्त्रोर्णमुलि च णिनौ क्विपि च तद्धिते|
एवं नवप्रकारैषा ज्ञेया वाचकलोपिनी||

There are nine types of वाचकलुप्ता
1. वादिलुप्ता उपमानवाचकवायथेवादिलुप्ता - absence of उपमानवाचक words such as वा, यथा, इव etc.
2. कर्मक्यचि - according to the grammatical rule समासे 'उपमानादाचारे'
3. अधिकरणक्यचि - according to the grammatical rule 'अधिकरणाच्च'
4. कर्तृक्यङि - according to the rule 'कर्तु: क्यङ्सलोपश्च इति'
5. कर्मणमुलि - according to the rule'उपमाने कर्मणि च'
6. कर्तृणमुलि - according to the rule "चात्"
7. णिनौ - according to rule 'कर्तयुपमाने'
8. क्विपि - according to rule 'सर्वप्रातिपदिकेभ्य: क्विब्वा वक्तव्य:'
9. तद्धिते

The page in the book dealing with वादिलुप्ता is missing. Therefore I would start with the second onwards only.

2. कर्मक्यचि -
इन्द्रीयन्ति दृशस्ते स्पृशन्ति यान्स्तान्विशो भृशं विभवै:|
चन्द्रीयन्ति दिशस्ते यश:प्रकाशा विशालविशदिम्ना||
here इन्द्रीयन्ति and चन्द्रीयन्ति means इन्द्रमिवाचरति and चन्द्रमिवाचरति respectively. this is the example of कर्मक्यचि वाचकलुप्ता.


3. अधिकरणक्यचि -
जलधौ जननगृहीयति जलजे केलीगृहीयति मनोज्ञे |
सौधीयति वेङ्कटपतिविशङ्कटोरस्थले मले कमला ||
here जलधि and जननगृह has common धर्म namely मनोज्ञ. Similarly जलज and केलीगृह has common धर्म namely मनोज्ञ. उरस्थल and सौध has common धर्म namely अमल. जलधौ ,जलजे and वेङ्कटपतिविशङ्कटोरस्थले are example of अधिकरणक्यचि, Therefore it is example of अधिकरणक्यचि वाचकलुप्ता.


4.कर्तृक्यङि -
भगवन्भवच्चरित्रं भवतप्तानां विधूयते नॄणाम् |
अदसीयरसज्ञानां तदसीम मधूयते रसज्ञानाम्‌ ||
विधूयते and मधूयते means विधु or मधु इव आचरति. Here it is derived from कर्तृक्यङि. Therefore it is example of कर्तृक्यङि वाचकलुप्ता.


5.कर्मणमुलि and 6. कर्तृणमुलि-
गर्भनिधायंनिदधद्गर्भे भुवनान्यनन्यशरणानि |
जननीरक्षंरक्षसि घननीरदनील नीरजाक्ष त्वम् ||
गर्भानिव निदधदित्यर्थे गर्भनिधायम् is example of कर्मणमुलि whereas जननीव रक्षसीत्यर्थे जननिरक्षम् is an example of कर्तृणमुलि.


7. णिनौ -
मदमधुरद्विपगामी कामी कस्याम्चिदम्बुधिविभूतौ|
मदकलहंसालापी कोपीहापीनदोश्श्रियं दत्ताम्||

द्विपगामी - द्विप इव गच्छति
हंसालापी - हंस इव आलपति
"कर्तर्युपमाने" rule makes it णिनौ वाचकलुप्ता.



8. क्विपि -
अलिबालति हरिनीलति घनजालति सन्ततं तमालति च|
नीला तव रुचिमाला नीलाचलमौलिविहृतिलोलात्मनम्||
अलिबालति - अलिबाल इव आचरति. here नीलत्वं is the साधारण धर्म. thus it is example of क्विपि वाचकलुप्ता.


9. तद्धिते -
वेङ्कटपतिपदपङ्कजकिङ्करतायां न जातु यस्य रुचि:|
दुर्विषयेष्वेव सदा वर्वति नरो शुचि: खरकुटी स:||

खरकुटी - खरनिवासक्षुद्रतमस्थानविशेष:,
खरकुटीव पुरुष - 'इवे प्रतिकृतौ' gives कन् suffix which is elided by the rule 'लुम्मनुष्ये' which directs elisin for मनुष्यार्थे. Therefore खरकुटी actually means खरकुटीव पुरुष:. therefore it is example of तद्धित वाचकलुप्ता.

2 comments:

  1. धवल जी आप ने हो लिखा है समझ में नहीं आया कि ये क्या है. आप तो आई.ए.एस. हैं और डॉक्टर भी. :-)
    अरे ! इसका रेफरेंस तो दीजिये. तो ही न समझ में आएगा कि ये क्या है.

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  2. राजीवजी, यह ब्लोग संस्कृत अलङ्कारशास्त्र के बारे में है मैं उपमा अलङ्कार के बारे में लिख रहा हूं। अगर आप पहले ब्लोग से देखेंगे तो आपको सब समज में आ जाएगा। बहुत बहुत धन्यवाद, आपकी टिप्पणी के लिए|

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